Saturday, 24 December 2016

मुरलिया बजाते हैं कृष्ण....


जय श्री राधे जय श्री कृष्ण.....!!
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण
मुरलिया बजाते  हैं कृष्ण
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण....!
वो विराट हैं वो असीम हैं
महा शून्य और राम रहीम हैं
लघु रूप दिखाते हैं कृष्ण..
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण....!
जय श्री राधे जय श्री कृष्ण.....!!
*****

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श्रीमद् भगवद् गीता महा गीत है, ज्ञान गीत है


गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.

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Friday, 23 December 2016

हमसब के सामने आते हैं कृष्ण


जय श्री राधे जय श्री कृष्ण.....!!
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण
मुरलिया बजाते  हैं कृष्ण
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण....!
वो विराट हैं वो असीम हैं
महा शून्य और राम रहीम हैं
लघु रूप दिखाते हैं कृष्ण..
हमसब के सामने आते हैं कृष्ण....!
जय श्री राधे जय श्री कृष्ण.....!!
*****

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Saturday, 29 October 2016

नमस्कार का आनंद* Bliss of Salute


***नमस्कार का आनंद***
नमस्कार की मुद्रा में आनंद ही आनंद है.. बढ़ते जाएगा आनंद जैसे जैसे आप हाथ ऊपर करते जाएँगे.. अनाहद.. विशुद्ध.. आज्ञा.. सहस्रसार चक्रों में...!
***
परमात्मा को भी याद करना है तो किसी व्यक्ति के रूप में ही किया जा सकता है.. व्यक्ति यानि जो व्यक्त हो आपके समक्ष, अभिव्यक्त हो आपके समक्ष.. किसी भी माध्यम से...!
***०***
***भीतर की सफाई***

दीपावली के समय जब हम सफाई करने लगते हैं तब पता चलता है कि कितनी गंदगियाँ जमा हो गईं थी... पता नहीं कितने जन्मों से अपने भीतर गए भी नहीं हैं हम, सफाई की बात तो दूर.. पता नहीं कितनी गंदगियाँ भीतर जमा हैं और सफाई में कितने जन्म लगेंगे, जबकि गंदगी दिनोदिन बढ़ती ही जा रही...! भीतर की गंदगी साफ करते रहना चाहिए सबेरे शाम साधना करते रहना चाहिए।
***

***अँधयुद्ध***
कल रात्रि साधना में, किसी अज्ञात शक्ति ने मेरे द्वारा महाकाल शक्ति को आदेश दिए कि एक वर्ष तक पूरी पृथ्वी पर हर स्तर पर अँधयुद्ध का आयोजन करे !
॥ जय माँ काली ॥
***
आज पृथ्वी पर की सभी समस्याओं का समाधान एक मात्र युद्ध ही है.. श्री कृष्ण का अवतरण हमेशा धर्मयुद्ध के लिए होता है.. मगर इस काल में न कौरव हैं न पाण्डव.. सिर्फ धृतराष्ट हैं.. प्रजातंत्र में हर कोई प्रजा और राजा दोनों एक साथ है.. लेकिन हर कोई मोहान्ध है... तो अँधयुद्ध के बाद ही स्पष्ट हो सकता है कि कौन शुभ के पक्ष से लड़ेगा धर्मयुद्ध में और कौन अशुभ के पक्ष से.. कौन-कौन कौरव हैं और कौन-कौन पाण्डव...!
***
जगत ही झूठ है, प्रपंच है, माया है, सपना है.. तो इसमें झूठ बोलिए या सच क्या फर्क पड़ता है..! फर्क सिर्फ इस बात में है कि झूठ या सच जो भी बोला जाता हो उसके पीछे उदेश्य क्या है...!
***०***
(Date- 28.10.2016)




Friday, 28 October 2016

श्री कृष्ण का धर्म * Religion of Sri Krishna*


***श्री कृष्ण का धर्म***
श्री कृष्ण का एक ही धर्म था- अशुभ का दमन किसी भी प्रकार से और आज भी पृथ्वी पर एक यहीं धर्म सच्चा धर्म माना जाएगा...!
***
मैं उसे ही शुभ कह सकता हूँ जो अशुभ का विरोध, दमन करे.. अशुभ से युद्ध करे...!
***०***

***साधना और समर्पण***
बुद्ध, महावीर, मीरा जैसा मैं संकल्प संपन्न नहीं था जो साधना की सर्वोच्च शिखर पर पहुँच कर समर्पित होता, तो पहाड़ की तराई में ही मैंने सर पटक दी अपना...!
***
समर्पण के बाद साधना की चिंता गुरु/भगवान के सर चली जाती है.. वो स्वयं साधना करवाते चले जाते हैं.. यह मेरा अनुभव है...!
***०***
साधना का शिखर यहीं है कि साधक को यह दिखाई पड़ने लगता है कि कितना भी ऊँचा चढ़े कोई आकाश हमेशा उतना ही ऊँचा रहता है जितना पहले था, उसे छू पाना असंभव है.. परमात्मा को पाना असंभव है.. और खुद को मिटा पाना भी असंभव है.. यह भी परमात्मा की हाथों में ही हैं...!
***

***ओशो के उत्तराधिकारी***
ओशो के जो उत्तर इस काल में होने चाहिए, उन्हें देने का अधिकारी उनका हर शिष्य-शिष्या है.. हर ओशो शिष्य-शिष्या ओशो का उत्तराधिकारी है...!
***
संयास का गैरिक वस्त्र पहनने वाले के भीतर धधकती अग्नि का प्रतीक है, जो हर प्रकार की भीतरी और बाहरी अशुद्धियोँ को जला कर शुद्ध दे ...!
***०***
(Date- 27.10.2016)


Monday, 6 June 2016

अजगर करे न चाकरी.........सबके दाता राम!


जय श्री राम....!
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम!
तुलसी दास जी कहते हैं:
सियाराम मय सबजग जानी!
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी...!!

राम कौन हैं? राम यह सारा अस्तित्व है। "सबजग जानी".... 
समस्त अस्तित्व, सारा ब्रह्माण्ड ही रामरूप है। 
अस्तित्व क्या है? जिसमें अस्ति का गुण है यानि "जो है"।
सारा अस्तित्व, सारी दुनिया, सारा ब्रह्माण्ड ही राम हैं..
राम ही दिख रहे, राम ही सुनाई पड़ रहे..रूप, रस, स्पर्श, गंध, 
ध्वनि के द्वारा इनकी ही प्रतीति हो रही और जो इन सभी से परे हैं
वह भी राम ही हैं!
जय श्री राम....!!
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Tuesday, 31 May 2016

शिव और कृष्ण


शिव परमात्मा के
आत्म रूप में प्रकट हैं..
शुद्ध रूप में प्रकट हैं..
कृष्ण परमात्मा की
लीला रूप में प्रकट हैं..
व्यवहार रूप में प्रकट हैं..
ॐ नम: शिवाय...!
जय श्री कृष्ण...!

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Monday, 30 May 2016

जीव को जानें, शिव को जानें.. जगत का कल्याण करें


जीव ही शिव है...!
जबतक जीव शरीर में है
तबतक शरीर का कल्याण है!
परिवार, समाज, देश, दुनिया 
का कल्याण सम्भव है
इसी शरीर, मन, बुद्धि के द्वारा...!
शिवयोग साधना से जीव का साक्षाकार
करके अपरा और परा प्रकृतियों को वश में कर
संसार का कल्याण करें...!
*
ॐ नमः शिवाय...!
ॐ नमः जीवाय....!
***
***
Soul is Shiva...!
Up till soul remain in body
Body is survived, saved, welfared
in all ways. We can do wwelfare, serve our
family, society, nation, world only till soul existing
in the body, using our same body, mind n intellect.
Let us Realize our Soul by Siyag Sadhana and have 
Control over both Pra and Apradh Natures and 
Serve the world, do all every things for welfare of world.
Om namah shivay...!
Om namah jeevan....!
***

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Thursday, 24 March 2016

भगवत गीता और कृष्ण


गीता में श्रीक्रष्ण अपने सखा, शिष्य, प्रिय अर्जुन को कहते हैं-
"हे अर्जुन! जो ज्ञान मैनें सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को कहा था, वही
ज्ञान, वही परमज्ञान आज तुझे मैं कह रहा हूँ." –
यह घोषणा उस शरीर नाम से
जाने जाने वाले कृष्ण,
जिस शरीर के जनक वसुदेवजी हैं, जननी देवकीजी हैं-
उस शरीर की यह घोषणा नहीं है.
यह घोषणा करने वाला परमात्मा (परम् आत्मा) हैं,
ईश्वर हैं , सर्वेश्वर हैं, परमेश्वर हैं,
या किसी भी नाम से जाना जाने वाला,
किसी धर्म के अनुआयियों द्वारा माना या
जाना जाने वाला-
सर्वव्यापी, सर्वकालीन, सर्वज्ञ, सर्वातीत, सर्वलिप्त, सर्वालिप्त- परम
अस्तित्व की है, अनंत अस्तित्व की है.

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Thursday, 17 March 2016

गीता महागीत है! श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१ Sri Bhagwat Geeta Adhyay 01 Sloka 01 Post 01


गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.
**
!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१!!
!!ॐ नमो भगवाते!!
परमगीत पुनीता: भगवत गीता!
गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.

यह हर काल के, हर जाति के, हर वंश, गोत्र, धर्म, सम्प्रदाय, संघ के
मनुष्यों के लिए आत्मा सदृश्य अमृत है, अनैश्वेर है, शास्वत है.

गीता में श्रीक्रष्ण अपने सखा, शिष्य, प्रिय अर्जुन को कहते हैं-
"हे अर्जुन! जो ज्ञान मैनें सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को कहा था, वही
ज्ञान, वही परमज्ञान आज तुझे मैं कह रहा हूँ." –
यह घोषणा उस शरीर नाम से
जाने जाने वाले कृष्ण,
जिस शरीर के जनक वसुदेवजी हैं, जननी देवकीजी हैं-
उस शरीर की यह घोषणा नहीं है.
यह घोषणा करने वाला परमात्मा (परम् आत्मा) हैं,
ईश्वर हैं , सर्वेश्वर हैं, परमेश्वर हैं,
या किसी भी नाम से जाना जाने वाला,
किसी धर्म के अनुआयियों द्वारा माना या
जाना जाने वाला-
सर्वव्यापी, सर्वकालीन, सर्वज्ञ, सर्वातीत, सर्वलिप्त, सर्वालिप्त- परम
अस्तित्व की है, अनंत अस्तित्व की है.

यह घोषणा उसी अनंत परम् अस्तित्व की है:
"सृष्टि के आरंभ में मैंने जो ज्ञान सूर्य को कही थी वही ज्ञान है
अर्जुन! उसी ज्ञान को मैं आज तुझसे कह रहा हूँ." यह कहना, यह घोषणा विराट
परम् अस्तित्व की है
जो पूर्ण रूप में वसुदेवजी के पुत्र श्रीकृष्णजी के मुखारविंद से की जा रही है.

परमात्मा हर काल में, हर युग में, हर अर्जुन के समक्ष अपने संपूर्ण रूप
में, विराट रूप में प्रकट होता है,
गीत गाता है, गीता को प्रकट करता है, महाज्ञान को प्रकट करता है,
आत्मज्ञान को, प्रमात्मज्ञान को अभिव्यक्त करता है.
यहीं श्रीकृष्ण के द्वारा उपरोक्त घोषणा में श्रीकृष्ण के कहने के भाव
हैं- मेरी समझ से.

गीता महाअध्यात्म है, महागीत है, महाकाव्य है.
समस्त जगत की उत्पति, सञ्चालन प्रकृति और विनाश प्रकृति के अनंत गूढ़तम
रहस्यों को प्रकट कराती है-गीता!
जङ जगत, चेतन जगत, अंतर्चेतन जगत,
अतिचेतन जगत-
सबों का विज्ञान और मनोविज्ञान संपूर्ण और स्पष्ट रूप
आलोकित की है परमात्मा ने, श्रीकृष्ण ने:
सर्वकाल के मनुष्यों के लिए श्रीमभ्दगवग्दीता में, श्रीगीता में.!!
श्रीगीता के श्लोकों में एक शब्द भी अनावश्यक नहीं कहा गया है.
सार्थक हैं, परमार्थक हैं, रहस्यमयी हैं सारे शब्द गीता के सारे श्लोकों के.

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!

क्रमश:....!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!! में 
!!ॐ नमो भगवाते!!

श्रीमभ्दगवग्दीता-मेरी समझ में **श्रीमभ्दगवग्दीता के श्लोकों पर टीके **कृष्ण नहीं आये..- इक्कीस वर्षों तक लिखी जाने वाली बहुत ही लम्बी कल्प-सत्य धारावाही कहानी..**महाभारत पर समसामयिक उपयोग दृष्टि **श्रीमभ्दगवग्दीता में श्री कृष्ण के अनमोल वचन..तथा अन्य आध्यात्मिक और साहित्यिक अभिब्यक्तियाँ आदि पढ़ने के लिए नीचे का लिंक क्लिक करें:-
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Thursday, 10 March 2016

हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! (भजन और भाव)



*
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
शुद्ध आध्यात्मिक, शुद्ध वैज्ञानिक महागीत पुनीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
**
अर्जुन सा एकाग्र नहीं हैं,
बुद्धि तीव्र कुशाग्र नहीं है;
महाबली ना महाबाहो हैं,
हम सब हैं भयभीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
***
हम तो बड़े कमजोर मनुज हैं,
असहाय मजबूर मनुज हैं;
कदम कदम पे हम हैं फिसलते,
और हैं बड़े पतिता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
****
तुम समर्थ बस और न कोई,
दुष्ट दमन कर सके न कोई;
धृतराष्ट बन बैठे हैं सब,
मोह ने इनको है जीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
*****
हम सब भी हैं मोह के वश में,
काम, क्रोध, मद, लोभ के वश में;
पर हम गिरे हैं चरण तुम्हारे,
उठा लो हमको मीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
*******

Monday, 7 March 2016

शिवरात्रि की शुभकामनायें!!


हे जगत पिता और जगदम्बे....!!
*
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!
शिवरात है बारात है
कल्याण का सौगात है
प्रेममय साथ है…....
शिवनाथ की छवि न्यारी……
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!
*

शादी करते हमें दिखने को
प्रीत की रीत सिखाने को
इस बात से जगाने को
एक रहष्य बताने को...
शिव शक्ति एक है
हर जीव के भीतर...
सिर्फ जरूरत है
जगाने का.....
शिव तंत्र बताये 
हमें जगाने को..!
कि सारी शक्ति है तुम्हारी....!
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!

शिवरात्रि की शुभकामनायें!!




Saturday, 5 March 2016

* तारणहार परमात्मा धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना करते हैं**



** तारणहार परमात्मा धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना करते हैं**

॥ जय जय श्री राधे कृष्ण.. ॥

कुछ भी करना उचित या अनुचित, अच्छा या बुरा नहीं.. इतना ही नहीं बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है परमात्मा की ओर से हर मनुष्य को कि वह कुछ भी करे.. ।

मन, बुद्धि, विवेक देकर साथ में हमें पूर्ण आजादी भी दे रखी है ईश्वर ने, खुदा ने, ममतामयी और न्यायपूर्ण अस्तित्व ने कि हम पूर्णरूपेण कर्त्ता और परिणाम भोक्ता हैं।

इसीलिए तो परमात्मा ने हमें इतना सुयोग्य, सचेतन बनाया। और सुसंस्कृत भी करता रहता हर काल में शरीर धर धर के, अवतीर्ण हो हो कर, गुरु, संत, पैगम्बर के रूप में.. धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना कर कर के।

धर्म, संस्कृति की पुनर्स्थापना का उदेश्य है उस काल और भविष्य में आने वाली मनुष्यता को सचेत करना, समझाना और सुपथ पर लाना और बोध देना कि मनुष्य को अपनी बुद्धि और विवेक से जीवनपथ में बार बार यह सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि उसे क्या फल चाहिए और कौन कौन कर्म करे तथा  कौन कौन कर्म न करे, जिनके फल उसके फलेच्छा के अनुकूल हों।

धर्म, संस्कृति की पुनर्स्थापना में परमात्मा इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि मनष्यों को तर्कों, तथ्यों, तुकों, कथा-साहित्यों, परा-अपरा अभिव्यक्तियों और प्रत्यक्षीकरणों के द्वारा इस बात, तथ्य, ज्ञान से भी संस्कृत करना है कि वे इच्छा किस फल, किन फलों की करें।

और भी महत्वपूर्ण बात परमात्मा के सामने यह रहती है  धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना में, अपने आत्मवत मनुष्यों के कल्याण के लिए कि पद्धतियाँ, विधियां, रीतियाँ और नीतियाँ जो रूढ़िगत हो गयीं हैं, जिनमें ज्ञानाग्नि  का अवशेष  रह गया है, भभूत्तिकृत हो गयीं हैं जो, सिर्फ कर्म-काण्डिय रह गयीं हैं जो, औपचारिक मात्र हो क्र रह गयीं हैं जो--उनकी वैज्ञानिकता और ज्ञान के पक्ष को उजागर करें, उनकी उपयोगिताओं पर समसामयिक प्रकाश डालें तथा उनके रूपों में भी समसामयिक, आयश्यक नवीकरण करें। इस नवीकरण में मौलिक तथ्यों, तत्वों में कोई बदलाव नहीं होता, क्योंकि यह सम्भव भी नहीं, लेकिन व्यवहारिक, प्रायोगिक उपयुक्त रूपांतरण स्थान, काल और युग के लिए अत्यंतावश्यक हैं।

यह काल जिसमें पृथ्वी के एक ही वायुमंडल में सांसें लेने वाले हम सभी परमात्मा के बनाये पूतलें हैं। पिछले पचास वर्षों में कई संदेशवाहक, पैगम्बर सदृश्य परमात्मा के अवतरण हुए.... ओशो,  जे. कृष्णमूर्ति, आनंदमूर्ति..... जो अत्यंत कार्य किये, ज्ञान और शांति तथा सुव्यवस्था की स्थापना के लिए।

सारी पृथ्वी पर प्रेम, ज्ञान, ध्यान, शांति के पैगामों को पहुँचाई इन पैगम्बरों ने, परमात्मा के अवतारों ने, लेकिन धृष्टराष्ट्र की भी तो, दुर्योधन और सारे कौरवों की भी तो अपनी मर्यादाएं हैं न....!  भला उनकी स्थूल बुद्धियों को सूक्ष्म, कोमल, प्रेमपूर्ण, रसयुक्त संदेशों और आग्रहों का कोई स्पर्श हो भी तो कैसे हो और यह बात कोई नयी भी नहीं,  लेकिन एक बात अवश्य विचारणीय है कि जीसस क्राइस्ट के समय से अब तक ऐसे अव्वतारों, पैहम्बरों को जघन्य अपराधियों के तरह ही सताया गया है, दण्डित किया गया है परमप्रेम के इन अवतारों को!!

अब समय आ गया है तारणहार के अवतरण का, क्योंकि सच्चे धर्मों को निःवस्त्र करने  के प्रयास बहुत बार हो चुके है पिछले दो हजार वर्षों में, पांडव वनवास और अज्ञातवास को बहुत जी चुके हैं, नीति, धर्म का पालन करने वालों की त्रासदियां अब तारणहार के बर्दाश्त के बाहर हो गयीं हैं!!!

अब तो तारणहार का आना अवश्यम्भावी है,
निश्चय जान,
सम्भवामि युगे युगे!!!

॥ जय जय श्री राधे कृष्ण.. ॥

Thursday, 25 February 2016

हे राधे हे कृष्ण मुरारी (भजन और भाव)



*****भजन*****

*
हे राधे हे कृष्ण मुरारी
आये शरण तिहारी....!
*
हे राधे हे गिरिधारी
रख लो लाज हमारी...!
*
हे राधे हे वंशीधारी
अनाथ नाथ तुम्हारी...!
*
हे राधे हे बांके बिहारी
अब है आस तिहारी..!
*
हे राधे हे चक्रधारी
माया जगत पसारी...!
*
जय राधे जय श्याम मुरारी
जय दीन दुखन उबारी......!
*****

<> :भाव: <>

ईश्वर और जगत (God and World) यानि शिव और शक्ति (Shiva and His Power)
यानि पुरुष और प्रकृति (Master and Nature) यानि स्रष्टा और सृष्टि (Creator and Creation) यानि कृष्ण और राधा (Krishna and Radha) सदैव ही, सर्वत्र ही विद्यमान हैं। दोनों दो नहीं एक ही हैं। यह है हमारी दार्शनिक ऊंचाई, तत्व चिंतन की गहराई। इन ऊंचाइयों और गहराईओं के बीच एकरस बहती रहती है मनुष्य चेतना की धारा, गंगोत्री से गंगाधाम की तरह......इसी धारा का नाम है भक्ति!
चाहे कोई मजहब हो, कोई संस्कृति हो... मनुष्यता के भीतर किसी अज्ञात सर्वशक्तिमान सत्ता, अस्तित्व के प्रति आस्था सदैव सांसे लेती रहती है, सांसों की तरह, जन्म से मृत्यु पर्यन्त! भक्ति के कारण, आस्था के कारण मनुष्य हृदय में समर्पण के फूल खिलते हैं, रस की धार बहती है, प्रेम की कलियाँ प्रफुटित होती रहती हैं!
और शरण.... जब भी भटकता है मन, आंदोलित होती है हमारी चेतना, घिरते हैं दुखों के, निराशाओं के काले काले बादल तो हमें शरण की सुरति आती है....याद आती है अपने परमप्रिय की, समर्थ स्वामी की, परमपिता की.. कि अब बस वो ही एक सहारा हैं....!
 हे राधे हे कृष्ण मुरारी
आये शरण तिहारी....!
जब देवता, वो जिन्हें पूजते हैं हम, जिन्हें हम अपना जीवनदाता, पालनकर्ता मानते हैं, इंद्र मानते हैं, राजा (इंद्र का अर्थ राजा होता है, प्रजा जिसकी संतानें कहलाती है) जब वो कुपित हो जाते, अहंकार और मोह से भर जाता राजा का चित और करने लगता है अत्याचार, अन्याय अपनी संतानों सी प्रजा पर तो गिरिधारी, गोवर्धन गिरिधारी को पुकारने के आलावा क्या उपाय रह जाता है...!
हे राधे हे गिरिधारी
रख लो लाज हमारी...!

अभी बाकी है, फिर आईयेगा....!!
॥ जय जय श्री राधे कृष्ण की ॥

Monday, 22 February 2016

परमात्मा आपकी चिंता करेंगे....




॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥

अपनी चिंता में रहिएगा तो, कोई आपकी चिंता न करेगा ।
दूसरों की चिंता कीजियेगा तो, दूसरे भी आपकी चिंता करेंगे ।
सबकी चिंता कीजियेगा  तो, परमात्मा आपकी चिंता करेंगे ।


"*॥श्रीमभ्दगवग्दीता॥* -मेरी समझ में"- अमृताकाशी...  "श्रीमभ्दगवग्दीता के
  श्लोकों पर टीके"-  स्वामी अमृतानंद सरस्वति...  "कृष्ण नहीं आये.."- इक्कीस 
वर्षों तक लिखी जाने वाली बहुत ही लम्बी कल्प-सत्य धारावाही कहानी.. 
- अमृताकाशी... "महाभारत पर समसामयिक उपयोग दृष्टि"- 
स्वामी अमृतानंद सरस्वति.. तथा श्रीमभ्दगवग्दीता में श्री कृष्ण के 
अनमोल वचन... और भी बहुत कुछ पढ़ने के लिए यहॉं जाएँ:

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Friday, 19 February 2016

श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०५ ॥



श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०५ ॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

धृष्टकेतुश्र्चेकितानः काशिराजश्र्च वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च नरपुङ्गवः ॥५ ॥

इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्,
कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं ।

टीका:-
यह युद्ध सिर्फ राज घराने, राज दरबार में हो रहे 
और हुए अन्यायों के खिलाफ ही नहीं, यहां
 देखने योग्य बात यह है कि भारतवर्ष के, 
भरत वंश के द्वितीय सम्राट जो परम् न्यायप्रिय, 
धर्म परायण, सर्व गुणसम्पन्न सम्राट युधिष्ठिर हुए 
उनका सत्ता अधिकार छलमय द्यूत सभा में 
१३ वर्ष पूर्व दुर्योधन ले लिया है... इन तेरह वर्षों 
से सम्पूर्ण विश्व में अनीति, अनाचार, अन्याय का 
साम्राज्य स्थापित है, हर जगह, हर तल पर, हर 
तबके के, हर स्तर से सर्वत्र शोषण, दमन, उत्पीड़न, 
दलन का दानवी तंत्र व्याप्त है.....!!! 
और इस महायुद्ध में शुभरथ का सारथि परमात्मा
 का होना अनिवार्य है जिसे श्री कृष्ण ने सम्भव कर
 दिए है....!!!
सम्भवामि युगे युगे....!! 
जय जय श्री राधे कृष्ण की....!!!
गीता का टीका लगाने वाले कृष्ण भक्तों, 
कृष्ण प्रेमियों की जय जय जय...!!!
<>




Wednesday, 17 February 2016

कहानी “कृष्ण नहीं आये….!” पर कुछ शब्द..




                               ***कहानी "कृष्ण नहीं आये...." पर कुछ शब्द***
                                            (एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति)
                                                            *

आरम्भ अंत रहित 
इस अस्तित्व में 
हर किसी का होना, 
आरम्भ अंत रहित कहानी
का हिस्सा अवश्य ही है । 
कहानी “कृष्ण नहीं आये….!” 
का आरम्भ अंत कैसे सम्भव है । 
कल्प-सत्य धारावाही कहानी 
“कृष्ण नहीं आये….!”
 के रचनाकार अमृतकाशी जी हैं,  
यह कहना सर्वथा गलत ही होगा, 
क्योंकि 
सभी कहानियों के रचनाकार, 
कलाकार और अदाकार 
तो स्वम् परमात्मा ही हैं । 
अमृत आकाश में रहने वाले 
सारे जीव,
जड़ चेतन, 
परा अपरा सब में, 
सब के पीछे, 
सब में समाये, 
सब से अलग मुक्त, 
युक्त और संयुक्त 
तो बस कोई एक ही 
ज्ञात और अज्ञात भी है….! 
प्रेरणकर्ता 
वह परमात्मा जो 
आपके भीतर बैठा है 
उसे शत शत नमन!!!

इतिहास, 
कहानी और पुराण में फर्क है…. 
इतिहास 
सिर्फ स्थान, काल, पात्र और घटना कहता है, 
समाचार जैसा…. 
कहानी कल्प-सत्य होती है…..
पुराण की विशेषता यह है 
कि 
कहानियों से निकलती कहानियां 
और 
कहानियों में समातीं कहानियाँ, 
लेकिन हर कहानी वेद केंद्रित होती है, 
वेद का स्पर्श 
हर पौराणिक कहानी की आत्मा होती है ।

कहानी “कृष्ण नहीं आये…!” 
का लिखा जाना आरम्भ हुआ 
1995 में 07 जुलाई को…. 
अमृतकाशी जी से मुलाक़ात 
और 
कहानी का सूत्रपात एक ही काल में हुआ.. 
अब मैं.......
 उन्हें ही आमंत्रित करता हूँ कि 
वे प्रस्तुति के लिए लेकर पधारे…!! 
इन्तजार में हम सभी रहेंगे…..!!!!!

-स्वामी अमृतानंद सरस्वती



Tuesday, 16 February 2016

जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण (भजन)




***भजन***

♥ <> ♥
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण।
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण ॥
मेरी नैया है मझधार 
आ थाम जरा पतवार
शरण आया तेरी द्वार
तू देख जरा इक बार..
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण।
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण ॥
पड़ा मोह भयानक जाल
बना जीवन ये जंजाल
इक बार सुन ले गोपाल
आ ना ले मुझे सम्भाल....
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण।
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण ॥
अब मौत ही प्यारी है लगती
हर ओर नजर बेवश तकती
निःसहाय मजबूर हूँ मैं.....
बस तेरी आस ही है दिखती..
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण।
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण ॥
तू आ जा नाथ अनाथों के
कुछ साथ नहीं इन हाथों के
कोइ नहीं भरोसा साथों के
तू रहता साथ अनाथों के....
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण।
जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे कृष्ण ॥
♥ <> ♥

Sunday, 14 February 2016

॥ श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०४ ॥



॥ श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०४ ॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

अत्र श्रूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्र्च द्रुपदश्र्च महारथः ॥४ ॥

इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले 
अनेक वीर धनुर्धर हैं - यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद ।

टीका:-
शत्रु की शक्ति का आंकलन, उसकी बड़ाई
 करना यह अच्छी  बात तथा वीरता का 
प्रतिक है । पांडव सेना की विशालता तथा 
सामर्थ्य देख कर दुर्योधन को भय भी होता है,
 सबसे अधिक भय उसे भीम से है क्योंकि गद्दा 
और मल्य युद्ध ही भीम, दुर्योधन तथा उसके
 सारे भाई भी जानते हैं और स्थूल बुद्धि की 
समानता भी दोनों में है ।

॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥
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और भी बहुत कुछ पढ़ने के लिए यहॉं जाएँ:
http://sribhagwatgeeta.blogspot.com



Friday, 12 February 2016

श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१ श्लोक ०३



॥श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०३॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३ ॥

 हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके 
बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है ।

टीका:
श्री कृष्ण, शकुनि और चाणक्य तीनों ही समान
 स्तरीय कूटनीतिज्ञ हैं.. लेकिन श्री कृष्ण कूटनीति 
का प्रयोग जगत कल्याण, न्याय के लिए करते 
हैं जबकि शेष दोनों ही महज बदले की भावना
से करते हैं । धृष्टद्युम्न का जन्म का उदेश्य द्रोण 
वध है, वह द्रोण का जानी दुश्मन है.. 
द्रोण कौरव सेना के प्रधान सेनापति बनते हैं
 तो कृष्ण इधर पांडव सेना का प्रधान सेनापति
 धृष्ट्रद्युम्न को बनवाते हैं... यह उनकी कूटनीति हैं, 
शुभ के पक्ष में, धर्म और न्याय के पक्ष में...!!
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॥ जय हो श्री राधे कृष्ण की.....॥
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Tuesday, 9 February 2016

श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०२


॥श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०२॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

सञ्जय उवाच 
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥ २ ॥

संजय ने कहा - हे राजन! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना
 देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे ।

टीका:
हर आदमी का जीवन प्रेमक्षेत्र, मोहक्षेत्र, युद्धक्षेत्र और 
धर्मक्षेत्र में हमेशा ही रहता है । परमात्मा से मुखातिव 
जो रहे उसकी जीत में कोई सन्देह नहीं । राजा दुर्योधन 
अपने प्रतिद्वन्दी पांडवों की सेना की व्यूह रचना का
 निरीक्षण करते हैं, शत्रु की शक्ति पर हमेशा सजग 
रहना चाहिए यह युद्धनीति है । निरीक्षण कर गुरु द्रोण 
जो मित्र द्रुपद से बदला लेने के लिए कुरुवंश के कुमारों 
के गुरु बने और द्यूतसभा में पुत्रमोह के कारण हस्तिनापुर 
का आजीवन गुलाम हो गए हैं उनके पास आकर दुर्योधन
बोलते हैं ।
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-स्वामी अमृतानंद सरस्वति

Saturday, 6 February 2016

श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०१



॥श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०१॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

धृतराष्ट्र उवाच :
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥ ०१ ॥
धृतराष्ट्र ने कहा -
हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से
एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
*****

टीका:
कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला है ।
धर्मयुद्ध है यह, हर किसी को पता है, सारी पृथ्वी
जान रही यह कि धर्मयुद्ध का ही होने जा रहा
शुभारंभ है । धर्म अधर्म के विरुद्ध युद्ध के लिए
पूर्णरूपेण सुशक्त, सुसंगठित, सुसज्जित होकर
चला आया है कुरुक्षेत्र में, अधर्म का नाश के लिए ।
महाराज धृतराष्ट्र भी भली भाँति यह जान रहे हैं
तभी तो बहुत अधीर, व्याकुल, बेचैन और
सशंकित हैं कि क्या होगा क्या हो रहा और
पूछते हैं संजय से कि  - हे संजय! धर्मभूमि
कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा
पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
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Monday, 1 February 2016

!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!!




!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!!
!!ॐ नमो भगवते!!
*
घृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!१!!

घृतराष्ट्र बोले, हे सञ्जय! 
धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए युद्ध की इच्छा रखने वाले 
मेरे और पांडुके पुत्रों ने क्या किया?!!१!!  

उपरोक्त श्लोक 'अर्जुन विषद योग' (प्रथम अध्याय: श्रीमभ्दगवग्दीता) का है.
 "श्रीमभ्दगवग्दीता: मेरी समझ में" नामक लिखी जाने वाली इस कृति के कर्ता 
स्वमं भगवान श्रीकृष्ण हैं.

मुझ विमूढ़ में ऐसी कोई प्रज्ञा या सामर्थ्य नहीं कि 
'श्रीमभ्दगवग्दीता' के एक श्लोक को भी समझ सकूँ.

परमपुरुष, परमात्मा भगवन श्रीकृष्ण ही अनुप्रेरित करते है, 
सब कुछ अनुकूल बनाते है,
और व्यक्त होने की कृपा करते है 
मुझ तुच्छ की लेखनी के माध्यम से.

इस कृति में मैं 'श्रीगीता' के मूल श्लोकों एवं टीकाओं को
गीताप्रेस, गोरखपुर के द्वारा प्रकाशित 
"पद्मपुराणान्तर्गत प्रत्येक  अध्याय के महामत्य्मसहितः श्रीमभ्दगवग्दीताः १६" 
से ले-लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
मैं गीताप्रेस, गोरखपुर(प्रकाशक एवं मुद्रक) का आभारी हूँ.
उनका वेबसाइट है www.gitapress.org
  
विषाद मानवता है, विषादमुक्त देवता है, विषादहीन पशुता है.
अर्जुन विषादयुक्त हो जाते हैं, श्रीकृष्ण सर्वथा विषादमुक्त हैं,
और  युद्धक्षॅत्र में आये शेष सारे कौरवों, पांडवों तथा उनकी सेनाओ के मनों में कोई विषाद नहीं!
यह एक स्पस्ट स्थिति है, मानसिक अवस्था है- 
इस वक्त युद्धभूमि में उपस्थित सभी मनुष्यों की.
पशुता, मानवता, देवता – 
तीनों गुण मनुष्य शारीरधारी जीव में ही संभव है 
और  गुणानुकूल विचार, भाव तथा कर्मादि होते हैं.

'घृतराष्ट्र' यह शब्द देखिये.
पुराणों की कथाओं में इनके रचियता श्रीवेदव्यासजी ने 
मुख्य-मुख्य पात्रों के नाम बङे सार्थक दिए हैं.
मैं यह नहीं समझता कि सारे नाम काल्पनिक है, 
लेकिन इश्वरकृपा से सार्थक अवश्य है.  
'घृतराष्ट्र'- क्या करेंगे आप इस शब्द का अर्थ- 
यही न कि दोषों, बुराइयों, गुस्ताखियों,
अज्ञानयुक्त कर्मो और व्यवस्थाओं वाला राष्ट्र!  

राजतान्त्रिक व्यवस्था में जैसा राजा होगा, 
वैसी ही प्रजा होगी, राष्ट्र होगा, सारी व्यवस्थाएं होगीं.
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जैसी प्रजा होगी, 
वैसा ही राजा होगा, सारी व्यवस्थाएं होगीं.
हमें इस बात को बार-बार ध्यान में रखना होगा 
कि वह कल जिसमे श्रीगीता का अवतरण हुआ,
उस काल में राजतान्त्रिक व्यवस्था थी,
और आज 
हमलोग प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जीने वाले, 
के सहभागी मनुष्य हैं.

"घृतराष्ट्र बोले,
हे सञ्जय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए युद्ध की इच्छा रखने वाले 
मेरे और पांडुके पुत्रों ने क्या किया?"

घृतराष्ट्र अंधे हैं, सूरदास भी अंधे हैं.
घृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण नहीं दिखाई पङते, 
नहीं दर्शन होता उन्हें श्रीकृष्ण का 
जब वो आते हैं,
सम्मुख होते हैं,
बोलते हैं,
शांति का प्रस्ताव रखते हैं,
मंगाते हैं वो राज्य, कपट के द्वारा जीता गया राज्य,
उनके पुत्र दूर्जोधन के द्वारा जूए में जीता गया वो राज्य,
वापस मांगते हैं,
क्योंकि 
अब पांडवों की वनवास की अवधि खत्म हो गयी,
पांडव अब वापस आ गए है, 
प्रकट हो गए हैं अज्ञातवास से भी
जो १४ वर्षों के वनवास के अंतिम एक वर्ष का था.
श्रीकृष्ण घृतराष्ट्र की सभा में आते हैं उनका शांतिदूत बन कर!
लेकिन घृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण नहीं दिखाई पङते,
नहीं सुनाई पङते कृष्ण के शब्द,
नहीं समझ में आता हैं श्रीकृष्ण का, पांडवों का शांति-प्रस्ताव!!!!

सूरदासजी भी अंधे है-
लेकिन वे श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान सुन पाते हैं,
डूब पाते हैं,
आत्मविभोर हो पाते हैं,
सब कुछ : अपना ज्ञान, अज्ञान, अहंकार –
सबकुछ समर्पित कर पाते हैं श्रीकृष्ण के चरणों में,
परमगति, परममति को प्राप्त हो पाते हैं!
 अपने परमप्रिय प्रभु को स्पर्श कर पाते हैं,
दर्शन कर पाते हैं
श्रीकृष्ण के. 
श्रीकृष्ण के सारे अध्यात्मिक,
वैज्ञानिक,
दार्शनिक,
चमत्कारिक,
नैतिक,
बौद्धिक और मानसिक व्यक्तित्वों,
कलाओं के साक्षात दर्शन का आनंद ले पाते है-
सदैव, अपने सम्पूर्ण जीवन काल में!!!

क्या फर्क है- घृतराष्ट्र और सूरदासजी की अन्धता में?   

क्रमश............ !!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०३!! में

!!ॐ नमो भगवते!!

अमृताकाशी