Friday 19 February 2016

श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०५ ॥



श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०५ ॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
*

धृष्टकेतुश्र्चेकितानः काशिराजश्र्च वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च नरपुङ्गवः ॥५ ॥

इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्,
कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं ।

टीका:-
यह युद्ध सिर्फ राज घराने, राज दरबार में हो रहे 
और हुए अन्यायों के खिलाफ ही नहीं, यहां
 देखने योग्य बात यह है कि भारतवर्ष के, 
भरत वंश के द्वितीय सम्राट जो परम् न्यायप्रिय, 
धर्म परायण, सर्व गुणसम्पन्न सम्राट युधिष्ठिर हुए 
उनका सत्ता अधिकार छलमय द्यूत सभा में 
१३ वर्ष पूर्व दुर्योधन ले लिया है... इन तेरह वर्षों 
से सम्पूर्ण विश्व में अनीति, अनाचार, अन्याय का 
साम्राज्य स्थापित है, हर जगह, हर तल पर, हर 
तबके के, हर स्तर से सर्वत्र शोषण, दमन, उत्पीड़न, 
दलन का दानवी तंत्र व्याप्त है.....!!! 
और इस महायुद्ध में शुभरथ का सारथि परमात्मा
 का होना अनिवार्य है जिसे श्री कृष्ण ने सम्भव कर
 दिए है....!!!
सम्भवामि युगे युगे....!! 
जय जय श्री राधे कृष्ण की....!!!
गीता का टीका लगाने वाले कृष्ण भक्तों, 
कृष्ण प्रेमियों की जय जय जय...!!!
<>




No comments:

Post a Comment