***श्री कृष्ण का धर्म***
श्री कृष्ण का एक ही धर्म था- अशुभ का दमन किसी भी प्रकार से और आज भी पृथ्वी पर एक यहीं धर्म सच्चा धर्म माना जाएगा...!
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मैं उसे ही शुभ कह सकता हूँ जो अशुभ का विरोध, दमन करे.. अशुभ से युद्ध करे...!
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***साधना और समर्पण***
बुद्ध, महावीर, मीरा जैसा मैं संकल्प संपन्न नहीं था जो साधना की सर्वोच्च शिखर पर पहुँच कर समर्पित होता, तो पहाड़ की तराई में ही मैंने सर पटक दी अपना...!
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समर्पण के बाद साधना की चिंता गुरु/भगवान के सर चली जाती है.. वो स्वयं साधना करवाते चले जाते हैं.. यह मेरा अनुभव है...!
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साधना का शिखर यहीं है कि साधक को यह दिखाई पड़ने लगता है कि कितना भी ऊँचा चढ़े कोई आकाश हमेशा उतना ही ऊँचा रहता है जितना पहले था, उसे छू पाना असंभव है.. परमात्मा को पाना असंभव है.. और खुद को मिटा पाना भी असंभव है.. यह भी परमात्मा की हाथों में ही हैं...!
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***ओशो के उत्तराधिकारी***
ओशो के जो उत्तर इस काल में होने चाहिए, उन्हें देने का अधिकारी उनका हर शिष्य-शिष्या है.. हर ओशो शिष्य-शिष्या ओशो का उत्तराधिकारी है...!
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संयास का गैरिक वस्त्र पहनने वाले के भीतर धधकती अग्नि का प्रतीक है, जो हर प्रकार की भीतरी और बाहरी अशुद्धियोँ को जला कर शुद्ध दे ...!
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(Date- 27.10.2016)
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