One who have in mind most of thinking
for own futures, who have much attachments
with own family....if he/she becomes political leader
and hold some important post.. but being same will he/she
think about nation or be like dhritrashtra.... the most
blind king in lust and attachment of own bloods?!
The main thing is that to what or to whom we consider as own. We become attached with our own and do all every things for that our own. Mostly politicians or kings consider, want, dream the political power post, because only they consider this as own. They only have attachment with the posts, the power chairs, governing chairs. They have only efforts how to become government, how to be in government. They only want to own, want to control, want to be and remain master of the entire population, entire public. Servicing and ownership is far different things to each other.
Dritrashtra wants ownership only. He wants, dreams also to remain empire forever of the kuru samrajya(central state, governing center of many states). And only for this very will, illegal ambition he do all any kinds of illegal, unethical, unwelfareable works to/with the public and also with his own blood relatives. He is only an attachment blinded king to the political power chair , which is not really, legally his, for which he is not a suitable one. He do get married with gandhari(princess of gandhar state) only for the Kingdom Hastinapur as to show himself an efficient, sufficient qualified prince and king for the post which he have illegally occupied. When gandhari gets pads on her eyes and starts living blind like to him, he becomes frustrated... but later he cames to know that gandhari will give birth of 100 sons according blessed by Lord shiva...he then started to dream this way that my all 100 sons will be stronger than all five pandav and even after the Kingdom goes out from his hand the same will be holded by his own sons and also that time he will remain empire from behind.
Being in power, being in government, becoming government only is the dream of all politicians, kings like attachment blind to the post, king Dritrashtra. They have nothing to do with public welfare, to serve people. They only want to remain controller, mighty.....nothing they have to think what justice or unjustified, what ethical os unethical, what legal or illegal, what i do will be in welfare of my public or not. They have only the blind ambition of ownership of the state/s. They're only attachment blinded kings, politicians.
(An my understanding coming from the understanding of
Bhagwat Gita)
http://spiritualskyatampma.blogspot.com
*श्रीमभ्दगवग्दीता की समझ से निकली समझ*
जिस किसी भी के भीतर अपनी चिंता और पारवारिक
मोह बंधन अधिक है.......
वह नेता बन कर राज्य या देश की चिंता थोड़े ही कर
पायेगा, वह तो धृतराष्ट्र ही होगा..मोहान्ध ही रहेगा......!!
मूल बात है हम अपना किसे समझते हैं, क्योंकि जिसे, जिस चीज को हम अपना समझते हैं उससे मोह होता है, लगाव होता है, आसक्ति होती है हमारी। उसके लिए ही हम सबकुछ करते हैं। धृतराष्ट्र के जैसे राजा या राजनीतिज्ञ सिर्फ राजपद को, सिंहासन को, मुकुट को, राजनैतिक पद को ही अपना मानते हैं, और इनकी सारी आसक्ति, सारा लगाव मात्र राजपद से, राजसत्ता से होता है। छोटे स्तर पर या बड़े स्तर पर राजनीति करने वालों या राजा महाराजाओं में अधिकतर राजसत्ता, पद का ही मोह होता है, उसी के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं। जहां तक, जिस स्तर तक जो राजनीति करता है मात्र उसकी इच्छा यहीं रहती है कि कैसे पद ग्रहण करें और फिर उस पद पर हमेशा बने रहने के प्रयास मात्र में ही इनकी सारी सोंच, सारा प्रयास, सारी कूटनीतियां होती हैं। धृतराष्ट्र वह कुरु साम्राज्य जिसके संचालन के योग्य भी नहीं हैं वे, अधिकार भी नहीं उन्हें उस साम्राज्य कोहासिल करने का, उसे पाने के लिए और पा लेने के बाद उसको अपने अधिकार में रखे रहने के लिए ही सब अनीति, अन्याय, दुर्नीति का प्रयोग करते रहते हैं। गंधारी से शादी भी इसी लिए करते हैं कि उसकी आँखों का इस्तेमाल कर राज्यसत्ता का सुयोग्य अधिकारी साबित कर सकें खुद को। गंधारी के आँखों पर पट्टी बांध लेने पर फिर बात आती है कि उसे सौ पुत्रों का वरदान है, तो सौ पुत्र मिल कर पांडवों पर सदैव भरी पड़ेंगे और राजसत्ता उनके हाथों से निकलने पर भी कौरवों के हाथों में ही होने से परोक्ष रूप से सत्ता उनके ही अधीन होगी।
ऐसे सत्ता लोलुप, सत्ता से आसक्त राजनीतिज्ञ या राजा प्रजा की, आम जनता की क्या सेवा करेंगें! ये तो मालकियत ही चाहते सिर्फ, मालकियत ही करते सिर्फ, प्रजा पालन, जनकल्याण, नीति अनीति, न्याय अन्याय से इन्हें कभी कोई मतलब ही नहीं हो सकता। सत्ता के मोह में अंधे हैं ये...
मोहान्ध हैं ये राजे महाराजे और राजनीतिज्ञ लोग!
जय श्री राधे कृष्ण!!
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ऐसे सत्ता लोलुप, सत्ता से आसक्त राजनीतिज्ञ या राजा प्रजा की, आम जनता की क्या सेवा करेंगें! ये तो मालकियत ही चाहते सिर्फ, मालकियत ही करते सिर्फ, प्रजा पालन, जनकल्याण, नीति अनीति, न्याय अन्याय से इन्हें कभी कोई मतलब ही नहीं हो सकता। सत्ता के मोह में अंधे हैं ये...
मोहान्ध हैं ये राजे महाराजे और राजनीतिज्ञ लोग!
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