॥श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०३॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
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पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३ ॥
हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके
बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है ।
टीका:
श्री कृष्ण, शकुनि और चाणक्य तीनों ही समान
स्तरीय कूटनीतिज्ञ हैं.. लेकिन श्री कृष्ण कूटनीति
का प्रयोग जगत कल्याण, न्याय के लिए करते
हैं जबकि शेष दोनों ही महज बदले की भावना
से करते हैं । धृष्टद्युम्न का जन्म का उदेश्य द्रोण
वध है, वह द्रोण का जानी दुश्मन है..
द्रोण कौरव सेना के प्रधान सेनापति बनते हैं
तो कृष्ण इधर पांडव सेना का प्रधान सेनापति
धृष्ट्रद्युम्न को बनवाते हैं... यह उनकी कूटनीति हैं,
शुभ के पक्ष में, धर्म और न्याय के पक्ष में...!!
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॥ जय हो श्री राधे कृष्ण की.....॥
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