Thursday 24 March 2016

भगवत गीता और कृष्ण


गीता में श्रीक्रष्ण अपने सखा, शिष्य, प्रिय अर्जुन को कहते हैं-
"हे अर्जुन! जो ज्ञान मैनें सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को कहा था, वही
ज्ञान, वही परमज्ञान आज तुझे मैं कह रहा हूँ." –
यह घोषणा उस शरीर नाम से
जाने जाने वाले कृष्ण,
जिस शरीर के जनक वसुदेवजी हैं, जननी देवकीजी हैं-
उस शरीर की यह घोषणा नहीं है.
यह घोषणा करने वाला परमात्मा (परम् आत्मा) हैं,
ईश्वर हैं , सर्वेश्वर हैं, परमेश्वर हैं,
या किसी भी नाम से जाना जाने वाला,
किसी धर्म के अनुआयियों द्वारा माना या
जाना जाने वाला-
सर्वव्यापी, सर्वकालीन, सर्वज्ञ, सर्वातीत, सर्वलिप्त, सर्वालिप्त- परम
अस्तित्व की है, अनंत अस्तित्व की है.

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http://sribhagwatgeeta.blogspot.com


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Thursday 17 March 2016

गीता महागीत है! श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१ Sri Bhagwat Geeta Adhyay 01 Sloka 01 Post 01


गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.
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!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१!!
!!ॐ नमो भगवाते!!
परमगीत पुनीता: भगवत गीता!
गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.

यह हर काल के, हर जाति के, हर वंश, गोत्र, धर्म, सम्प्रदाय, संघ के
मनुष्यों के लिए आत्मा सदृश्य अमृत है, अनैश्वेर है, शास्वत है.

गीता में श्रीक्रष्ण अपने सखा, शिष्य, प्रिय अर्जुन को कहते हैं-
"हे अर्जुन! जो ज्ञान मैनें सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को कहा था, वही
ज्ञान, वही परमज्ञान आज तुझे मैं कह रहा हूँ." –
यह घोषणा उस शरीर नाम से
जाने जाने वाले कृष्ण,
जिस शरीर के जनक वसुदेवजी हैं, जननी देवकीजी हैं-
उस शरीर की यह घोषणा नहीं है.
यह घोषणा करने वाला परमात्मा (परम् आत्मा) हैं,
ईश्वर हैं , सर्वेश्वर हैं, परमेश्वर हैं,
या किसी भी नाम से जाना जाने वाला,
किसी धर्म के अनुआयियों द्वारा माना या
जाना जाने वाला-
सर्वव्यापी, सर्वकालीन, सर्वज्ञ, सर्वातीत, सर्वलिप्त, सर्वालिप्त- परम
अस्तित्व की है, अनंत अस्तित्व की है.

यह घोषणा उसी अनंत परम् अस्तित्व की है:
"सृष्टि के आरंभ में मैंने जो ज्ञान सूर्य को कही थी वही ज्ञान है
अर्जुन! उसी ज्ञान को मैं आज तुझसे कह रहा हूँ." यह कहना, यह घोषणा विराट
परम् अस्तित्व की है
जो पूर्ण रूप में वसुदेवजी के पुत्र श्रीकृष्णजी के मुखारविंद से की जा रही है.

परमात्मा हर काल में, हर युग में, हर अर्जुन के समक्ष अपने संपूर्ण रूप
में, विराट रूप में प्रकट होता है,
गीत गाता है, गीता को प्रकट करता है, महाज्ञान को प्रकट करता है,
आत्मज्ञान को, प्रमात्मज्ञान को अभिव्यक्त करता है.
यहीं श्रीकृष्ण के द्वारा उपरोक्त घोषणा में श्रीकृष्ण के कहने के भाव
हैं- मेरी समझ से.

गीता महाअध्यात्म है, महागीत है, महाकाव्य है.
समस्त जगत की उत्पति, सञ्चालन प्रकृति और विनाश प्रकृति के अनंत गूढ़तम
रहस्यों को प्रकट कराती है-गीता!
जङ जगत, चेतन जगत, अंतर्चेतन जगत,
अतिचेतन जगत-
सबों का विज्ञान और मनोविज्ञान संपूर्ण और स्पष्ट रूप
आलोकित की है परमात्मा ने, श्रीकृष्ण ने:
सर्वकाल के मनुष्यों के लिए श्रीमभ्दगवग्दीता में, श्रीगीता में.!!
श्रीगीता के श्लोकों में एक शब्द भी अनावश्यक नहीं कहा गया है.
सार्थक हैं, परमार्थक हैं, रहस्यमयी हैं सारे शब्द गीता के सारे श्लोकों के.

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!

क्रमश:....!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!! में 
!!ॐ नमो भगवाते!!

श्रीमभ्दगवग्दीता-मेरी समझ में **श्रीमभ्दगवग्दीता के श्लोकों पर टीके **कृष्ण नहीं आये..- इक्कीस वर्षों तक लिखी जाने वाली बहुत ही लम्बी कल्प-सत्य धारावाही कहानी..**महाभारत पर समसामयिक उपयोग दृष्टि **श्रीमभ्दगवग्दीता में श्री कृष्ण के अनमोल वचन..तथा अन्य आध्यात्मिक और साहित्यिक अभिब्यक्तियाँ आदि पढ़ने के लिए नीचे का लिंक क्लिक करें:-
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Thursday 10 March 2016

हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! (भजन और भाव)



*
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
शुद्ध आध्यात्मिक, शुद्ध वैज्ञानिक महागीत पुनीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
**
अर्जुन सा एकाग्र नहीं हैं,
बुद्धि तीव्र कुशाग्र नहीं है;
महाबली ना महाबाहो हैं,
हम सब हैं भयभीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
***
हम तो बड़े कमजोर मनुज हैं,
असहाय मजबूर मनुज हैं;
कदम कदम पे हम हैं फिसलते,
और हैं बड़े पतिता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
****
तुम समर्थ बस और न कोई,
दुष्ट दमन कर सके न कोई;
धृतराष्ट बन बैठे हैं सब,
मोह ने इनको है जीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
*****
हम सब भी हैं मोह के वश में,
काम, क्रोध, मद, लोभ के वश में;
पर हम गिरे हैं चरण तुम्हारे,
उठा लो हमको मीता;
हे कृष्ण समझा दो ना, हमें तू अपनी गीता;
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे कृष्ण!
*******

Monday 7 March 2016

शिवरात्रि की शुभकामनायें!!


हे जगत पिता और जगदम्बे....!!
*
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!
शिवरात है बारात है
कल्याण का सौगात है
प्रेममय साथ है…....
शिवनाथ की छवि न्यारी……
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!
*

शादी करते हमें दिखने को
प्रीत की रीत सिखाने को
इस बात से जगाने को
एक रहष्य बताने को...
शिव शक्ति एक है
हर जीव के भीतर...
सिर्फ जरूरत है
जगाने का.....
शिव तंत्र बताये 
हमें जगाने को..!
कि सारी शक्ति है तुम्हारी....!
हे नाथ भोले बाबा, हे नाथ त्रिपुरारी...
हे मात सिंहवाहिनी, हे मात तू हमारी!

शिवरात्रि की शुभकामनायें!!




Saturday 5 March 2016

* तारणहार परमात्मा धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना करते हैं**



** तारणहार परमात्मा धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना करते हैं**

॥ जय जय श्री राधे कृष्ण.. ॥

कुछ भी करना उचित या अनुचित, अच्छा या बुरा नहीं.. इतना ही नहीं बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है परमात्मा की ओर से हर मनुष्य को कि वह कुछ भी करे.. ।

मन, बुद्धि, विवेक देकर साथ में हमें पूर्ण आजादी भी दे रखी है ईश्वर ने, खुदा ने, ममतामयी और न्यायपूर्ण अस्तित्व ने कि हम पूर्णरूपेण कर्त्ता और परिणाम भोक्ता हैं।

इसीलिए तो परमात्मा ने हमें इतना सुयोग्य, सचेतन बनाया। और सुसंस्कृत भी करता रहता हर काल में शरीर धर धर के, अवतीर्ण हो हो कर, गुरु, संत, पैगम्बर के रूप में.. धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना कर कर के।

धर्म, संस्कृति की पुनर्स्थापना का उदेश्य है उस काल और भविष्य में आने वाली मनुष्यता को सचेत करना, समझाना और सुपथ पर लाना और बोध देना कि मनुष्य को अपनी बुद्धि और विवेक से जीवनपथ में बार बार यह सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि उसे क्या फल चाहिए और कौन कौन कर्म करे तथा  कौन कौन कर्म न करे, जिनके फल उसके फलेच्छा के अनुकूल हों।

धर्म, संस्कृति की पुनर्स्थापना में परमात्मा इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि मनष्यों को तर्कों, तथ्यों, तुकों, कथा-साहित्यों, परा-अपरा अभिव्यक्तियों और प्रत्यक्षीकरणों के द्वारा इस बात, तथ्य, ज्ञान से भी संस्कृत करना है कि वे इच्छा किस फल, किन फलों की करें।

और भी महत्वपूर्ण बात परमात्मा के सामने यह रहती है  धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना में, अपने आत्मवत मनुष्यों के कल्याण के लिए कि पद्धतियाँ, विधियां, रीतियाँ और नीतियाँ जो रूढ़िगत हो गयीं हैं, जिनमें ज्ञानाग्नि  का अवशेष  रह गया है, भभूत्तिकृत हो गयीं हैं जो, सिर्फ कर्म-काण्डिय रह गयीं हैं जो, औपचारिक मात्र हो क्र रह गयीं हैं जो--उनकी वैज्ञानिकता और ज्ञान के पक्ष को उजागर करें, उनकी उपयोगिताओं पर समसामयिक प्रकाश डालें तथा उनके रूपों में भी समसामयिक, आयश्यक नवीकरण करें। इस नवीकरण में मौलिक तथ्यों, तत्वों में कोई बदलाव नहीं होता, क्योंकि यह सम्भव भी नहीं, लेकिन व्यवहारिक, प्रायोगिक उपयुक्त रूपांतरण स्थान, काल और युग के लिए अत्यंतावश्यक हैं।

यह काल जिसमें पृथ्वी के एक ही वायुमंडल में सांसें लेने वाले हम सभी परमात्मा के बनाये पूतलें हैं। पिछले पचास वर्षों में कई संदेशवाहक, पैगम्बर सदृश्य परमात्मा के अवतरण हुए.... ओशो,  जे. कृष्णमूर्ति, आनंदमूर्ति..... जो अत्यंत कार्य किये, ज्ञान और शांति तथा सुव्यवस्था की स्थापना के लिए।

सारी पृथ्वी पर प्रेम, ज्ञान, ध्यान, शांति के पैगामों को पहुँचाई इन पैगम्बरों ने, परमात्मा के अवतारों ने, लेकिन धृष्टराष्ट्र की भी तो, दुर्योधन और सारे कौरवों की भी तो अपनी मर्यादाएं हैं न....!  भला उनकी स्थूल बुद्धियों को सूक्ष्म, कोमल, प्रेमपूर्ण, रसयुक्त संदेशों और आग्रहों का कोई स्पर्श हो भी तो कैसे हो और यह बात कोई नयी भी नहीं,  लेकिन एक बात अवश्य विचारणीय है कि जीसस क्राइस्ट के समय से अब तक ऐसे अव्वतारों, पैहम्बरों को जघन्य अपराधियों के तरह ही सताया गया है, दण्डित किया गया है परमप्रेम के इन अवतारों को!!

अब समय आ गया है तारणहार के अवतरण का, क्योंकि सच्चे धर्मों को निःवस्त्र करने  के प्रयास बहुत बार हो चुके है पिछले दो हजार वर्षों में, पांडव वनवास और अज्ञातवास को बहुत जी चुके हैं, नीति, धर्म का पालन करने वालों की त्रासदियां अब तारणहार के बर्दाश्त के बाहर हो गयीं हैं!!!

अब तो तारणहार का आना अवश्यम्भावी है,
निश्चय जान,
सम्भवामि युगे युगे!!!

॥ जय जय श्री राधे कृष्ण.. ॥