Wednesday, 17 February 2016

कहानी “कृष्ण नहीं आये….!” पर कुछ शब्द..




                               ***कहानी "कृष्ण नहीं आये...." पर कुछ शब्द***
                                            (एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति)
                                                            *

आरम्भ अंत रहित 
इस अस्तित्व में 
हर किसी का होना, 
आरम्भ अंत रहित कहानी
का हिस्सा अवश्य ही है । 
कहानी “कृष्ण नहीं आये….!” 
का आरम्भ अंत कैसे सम्भव है । 
कल्प-सत्य धारावाही कहानी 
“कृष्ण नहीं आये….!”
 के रचनाकार अमृतकाशी जी हैं,  
यह कहना सर्वथा गलत ही होगा, 
क्योंकि 
सभी कहानियों के रचनाकार, 
कलाकार और अदाकार 
तो स्वम् परमात्मा ही हैं । 
अमृत आकाश में रहने वाले 
सारे जीव,
जड़ चेतन, 
परा अपरा सब में, 
सब के पीछे, 
सब में समाये, 
सब से अलग मुक्त, 
युक्त और संयुक्त 
तो बस कोई एक ही 
ज्ञात और अज्ञात भी है….! 
प्रेरणकर्ता 
वह परमात्मा जो 
आपके भीतर बैठा है 
उसे शत शत नमन!!!

इतिहास, 
कहानी और पुराण में फर्क है…. 
इतिहास 
सिर्फ स्थान, काल, पात्र और घटना कहता है, 
समाचार जैसा…. 
कहानी कल्प-सत्य होती है…..
पुराण की विशेषता यह है 
कि 
कहानियों से निकलती कहानियां 
और 
कहानियों में समातीं कहानियाँ, 
लेकिन हर कहानी वेद केंद्रित होती है, 
वेद का स्पर्श 
हर पौराणिक कहानी की आत्मा होती है ।

कहानी “कृष्ण नहीं आये…!” 
का लिखा जाना आरम्भ हुआ 
1995 में 07 जुलाई को…. 
अमृतकाशी जी से मुलाक़ात 
और 
कहानी का सूत्रपात एक ही काल में हुआ.. 
अब मैं.......
 उन्हें ही आमंत्रित करता हूँ कि 
वे प्रस्तुति के लिए लेकर पधारे…!! 
इन्तजार में हम सभी रहेंगे…..!!!!!

-स्वामी अमृतानंद सरस्वती



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