॥श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय ०१, श्लोक ०२॥
(कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण)
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सञ्जय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥ २ ॥
संजय ने कहा - हे राजन! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना
देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे ।
टीका:
हर आदमी का जीवन प्रेमक्षेत्र, मोहक्षेत्र, युद्धक्षेत्र और
धर्मक्षेत्र में हमेशा ही रहता है । परमात्मा से मुखातिव
जो रहे उसकी जीत में कोई सन्देह नहीं । राजा दुर्योधन
अपने प्रतिद्वन्दी पांडवों की सेना की व्यूह रचना का
निरीक्षण करते हैं, शत्रु की शक्ति पर हमेशा सजग
रहना चाहिए यह युद्धनीति है । निरीक्षण कर गुरु द्रोण
जो मित्र द्रुपद से बदला लेने के लिए कुरुवंश के कुमारों
के गुरु बने और द्यूतसभा में पुत्रमोह के कारण हस्तिनापुर
का आजीवन गुलाम हो गए हैं उनके पास आकर दुर्योधन
बोलते हैं ।
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-स्वामी अमृतानंद सरस्वति
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