Thursday 17 March 2016

गीता महागीत है! श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१ Sri Bhagwat Geeta Adhyay 01 Sloka 01 Post 01


गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.
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!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०१!!
!!ॐ नमो भगवाते!!
परमगीत पुनीता: भगवत गीता!
गीता महागीत है, महासंगीत है. ज्ञानगीत है, अध्यात्मगीत है.
गीता कोई कथा-कहानी जैसी नहीं है. गीता विशुद्ध ज्ञान है, सत्य-ज्ञान है.
सर्वोपयोगी, सर्वोत्कृष्ट है, ज्ञान का महासागर है गीता.

यह हर काल के, हर जाति के, हर वंश, गोत्र, धर्म, सम्प्रदाय, संघ के
मनुष्यों के लिए आत्मा सदृश्य अमृत है, अनैश्वेर है, शास्वत है.

गीता में श्रीक्रष्ण अपने सखा, शिष्य, प्रिय अर्जुन को कहते हैं-
"हे अर्जुन! जो ज्ञान मैनें सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को कहा था, वही
ज्ञान, वही परमज्ञान आज तुझे मैं कह रहा हूँ." –
यह घोषणा उस शरीर नाम से
जाने जाने वाले कृष्ण,
जिस शरीर के जनक वसुदेवजी हैं, जननी देवकीजी हैं-
उस शरीर की यह घोषणा नहीं है.
यह घोषणा करने वाला परमात्मा (परम् आत्मा) हैं,
ईश्वर हैं , सर्वेश्वर हैं, परमेश्वर हैं,
या किसी भी नाम से जाना जाने वाला,
किसी धर्म के अनुआयियों द्वारा माना या
जाना जाने वाला-
सर्वव्यापी, सर्वकालीन, सर्वज्ञ, सर्वातीत, सर्वलिप्त, सर्वालिप्त- परम
अस्तित्व की है, अनंत अस्तित्व की है.

यह घोषणा उसी अनंत परम् अस्तित्व की है:
"सृष्टि के आरंभ में मैंने जो ज्ञान सूर्य को कही थी वही ज्ञान है
अर्जुन! उसी ज्ञान को मैं आज तुझसे कह रहा हूँ." यह कहना, यह घोषणा विराट
परम् अस्तित्व की है
जो पूर्ण रूप में वसुदेवजी के पुत्र श्रीकृष्णजी के मुखारविंद से की जा रही है.

परमात्मा हर काल में, हर युग में, हर अर्जुन के समक्ष अपने संपूर्ण रूप
में, विराट रूप में प्रकट होता है,
गीत गाता है, गीता को प्रकट करता है, महाज्ञान को प्रकट करता है,
आत्मज्ञान को, प्रमात्मज्ञान को अभिव्यक्त करता है.
यहीं श्रीकृष्ण के द्वारा उपरोक्त घोषणा में श्रीकृष्ण के कहने के भाव
हैं- मेरी समझ से.

गीता महाअध्यात्म है, महागीत है, महाकाव्य है.
समस्त जगत की उत्पति, सञ्चालन प्रकृति और विनाश प्रकृति के अनंत गूढ़तम
रहस्यों को प्रकट कराती है-गीता!
जङ जगत, चेतन जगत, अंतर्चेतन जगत,
अतिचेतन जगत-
सबों का विज्ञान और मनोविज्ञान संपूर्ण और स्पष्ट रूप
आलोकित की है परमात्मा ने, श्रीकृष्ण ने:
सर्वकाल के मनुष्यों के लिए श्रीमभ्दगवग्दीता में, श्रीगीता में.!!
श्रीगीता के श्लोकों में एक शब्द भी अनावश्यक नहीं कहा गया है.
सार्थक हैं, परमार्थक हैं, रहस्यमयी हैं सारे शब्द गीता के सारे श्लोकों के.

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!

क्रमश:....!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!! में 
!!ॐ नमो भगवाते!!

श्रीमभ्दगवग्दीता-मेरी समझ में **श्रीमभ्दगवग्दीता के श्लोकों पर टीके **कृष्ण नहीं आये..- इक्कीस वर्षों तक लिखी जाने वाली बहुत ही लम्बी कल्प-सत्य धारावाही कहानी..**महाभारत पर समसामयिक उपयोग दृष्टि **श्रीमभ्दगवग्दीता में श्री कृष्ण के अनमोल वचन..तथा अन्य आध्यात्मिक और साहित्यिक अभिब्यक्तियाँ आदि पढ़ने के लिए नीचे का लिंक क्लिक करें:-
http://sribhagwatgeeta.blogspot.com
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