*****भजन*****
*
हे राधे हे कृष्ण मुरारी
आये शरण तिहारी....!
*
हे राधे हे गिरिधारी
रख लो लाज हमारी...!
*
हे राधे हे वंशीधारी
अनाथ नाथ तुम्हारी...!
*
हे राधे हे बांके बिहारी
अब है आस तिहारी..!
*
हे राधे हे चक्रधारी
माया जगत पसारी...!
*
जय राधे जय श्याम मुरारी
जय दीन दुखन उबारी......!
*****
<> :भाव: <>
ईश्वर और जगत (God and World) यानि शिव और शक्ति (Shiva and His Power)
यानि पुरुष और प्रकृति (Master and Nature) यानि स्रष्टा और सृष्टि (Creator and Creation) यानि कृष्ण और राधा (Krishna and Radha) सदैव ही, सर्वत्र ही विद्यमान हैं। दोनों दो नहीं एक ही हैं। यह है हमारी दार्शनिक ऊंचाई, तत्व चिंतन की गहराई। इन ऊंचाइयों और गहराईओं के बीच एकरस बहती रहती है मनुष्य चेतना की धारा, गंगोत्री से गंगाधाम की तरह......इसी धारा का नाम है भक्ति!
चाहे कोई मजहब हो, कोई संस्कृति हो... मनुष्यता के भीतर किसी अज्ञात सर्वशक्तिमान सत्ता, अस्तित्व के प्रति आस्था सदैव सांसे लेती रहती है, सांसों की तरह, जन्म से मृत्यु पर्यन्त! भक्ति के कारण, आस्था के कारण मनुष्य हृदय में समर्पण के फूल खिलते हैं, रस की धार बहती है, प्रेम की कलियाँ प्रफुटित होती रहती हैं!
और शरण.... जब भी भटकता है मन, आंदोलित होती है हमारी चेतना, घिरते हैं दुखों के, निराशाओं के काले काले बादल तो हमें शरण की सुरति आती है....याद आती है अपने परमप्रिय की, समर्थ स्वामी की, परमपिता की.. कि अब बस वो ही एक सहारा हैं....!
हे राधे हे कृष्ण मुरारी
आये शरण तिहारी....!
जब देवता, वो जिन्हें पूजते हैं हम, जिन्हें हम अपना जीवनदाता, पालनकर्ता मानते हैं, इंद्र मानते हैं, राजा (इंद्र का अर्थ राजा होता है, प्रजा जिसकी संतानें कहलाती है) जब वो कुपित हो जाते, अहंकार और मोह से भर जाता राजा का चित और करने लगता है अत्याचार, अन्याय अपनी संतानों सी प्रजा पर तो गिरिधारी, गोवर्धन गिरिधारी को पुकारने के आलावा क्या उपाय रह जाता है...!
हे राधे हे गिरिधारी
रख लो लाज हमारी...!
अभी बाकी है, फिर आईयेगा....!!
॥ जय जय श्री राधे कृष्ण की ॥